दो अक्षर मधुर
राम-नाम के दो अक्षर मधुर हैं, मनोहर हैं। मधुरता, जिव्हा का स्वाद होती है और मनोहरता, मन की लीनता। जिव्हा के स्वाद के समान और कुछ भी नहीं है। जिसमें स्वाद आ जाए, उससे अधिक स्वादिष्ट और कुछ नहीं हो सकता है। स्वादिष्ट-से-स्वादिष्ट वस्तु भी उसके सामने अत्यंत बेस्वाद लगती है। जिसे जिसका स्वाद आ जाए, उसके लिए वह अत्यंत प्रिय होता है। राम-नाम जिव्हा के लिए भी अत्यंत मधुर है। जीवन में राम-नाम से अधिक और कुछ भी नहीं है।
The two letters of the name Ram are sweet and beautiful. Sweetness is the taste of the tongue and sweetness is the humility of the mind. There is nothing like the taste of tongue. Nothing can be more delicious than what it tastes like. Even the tastiest-to-taste thing seems extremely tasteless in front of him. To whomever it tastes, it is very dear to him. The name of Ram is too sweet for the tongue. There is nothing in life more than the name of Ram.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...