जीवन का सत्य
एक शिशु के समान अपने जीवन सत्य के साथ खड़े होकर अपनी तमाम तरह की क्षुद्रता, मलिनता, दुर्बलता, अच्छाई-बुराई, सब कुछ साझा करते हुए स्वयं को अर्पित करने के भाव के साथ ग्रंथियाँ हलकी पड़ती हैं। प्रार्थना के इन पलों में हर श्वास में अपने इष्ट-आराध्य से संवाद तथा सद्गुरु की शरण में जाना भी एक अचूक उपाय रहता है। आवश्यकता बस, एक साहसिक प्रयास की रहती है। जब समझ आता है कि कब तक किनारे पर बैठे लहरें गिनते रहेंगे, तो फिर उफनती धारा में साहसिक छलाँग के साथ पार लगाने का अवसर आ जाता। इसके साथ फिर जीवन भयावह चुनौतियाँ उत्कर्ष की, विकास की एवं नवजीवन की सीढियाँ बन जाती हैं।
Standing with the truth of your life like a child, the glands lighten with the feeling of offering yourself, sharing all your pettiness, defilement, weakness, good and bad, everything. In these moments of prayer, communicating with one's deity in every breath and going to the refuge of the Sadguru is also a surefire way. All that is needed is a bold effort. When it is understood that how long the waves sitting on the shore will keep counting, then there will be an opportunity to cross the rushing stream with a bold jump. With this then life's frightening challenges become the stairs of progress, development and new life.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...