जीवन और जगत
इस जगत में कोई तो आनंद की लहरों से खेल रहा है, अठखेलियाँ कर रहा है तो वहीँ दूसरी ओर कोई गम के समंदर में डूबा हिचकोले खा रहा है। कोई किलकारियाँ मार रहा है तो कोई सिसकियाँ भर रहा है। किसी का दामन खुशियों से भरा है तो जीवन काँटों में उलझा है। कोई अपने स्वर्णमहल में रहकर भी उदास है तो कोई खुले आसमान के नीचे रहकर भी निहाल है। सचमुच जीवन और जगत के इस रूप को देखकर हमें कितना विस्मय व अचरज होता है ! पर क्या ऐसा अनायास ही होता है या फिर इसका कोई ठोस कारण है ? क्यों किसी के जीवन में सुख-ही-सुख है, आनंद-ही-आनंद है, तो किसी के जीवन में शोक की सिसकियाँ ही भरी हैं ?
In this world, someone is playing with the waves of joy, is playing rhetoric, while on the other hand, someone immersed in the sea of sorrow is having a hiccup. Some are screaming and some are sobbing. If someone's arm is full of happiness, then life is entangled in thorns. Some are sad even after living in their golden palace and some are happy even under the open sky. We are really astonished and astonished to see this form of life and the world! But does this happen suddenly or is there a solid reason for this? Why is there happiness and happiness in someone's life, there is only joy and happiness, then only sobs of grief are there in someone's life?
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...