प्रेम ही जीवन
दुष्ट प्रकृति के मनुष्य भी अपनी दुष्टता का पूर्ण प्रकाशन करने में तभी सफल हैं; जब सामने वाले के स्वभाव में पर्याप्त त्रुटियाँ मौजूद हों। यदि गायत्री के प्रथम चरण की आराधन करके हमने अपने स्वभाव को आत्मीयपूर्णता एवं मधुर बना लिया है, तो बुरे आदमियों की उग्रता देर तक नहीं ठहर सकती। वे भी सद्व्यवहार से पिघलाए जा सकते हैं और उनके अंदर जो थोड़ी भलमनसाहत है, उससे भरपूर लाभ उठाया जा सकता है। विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच अतएव प्रेम ही जीवन का एक मात्र नियम है। जो प्रेम करता है, वह जीता है; जो स्वार्थी है, वह मरता है। अतएव प्रेम के लिए ही प्रेम करो; क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है।
Humans of evil nature are also successful in making full disclosure of their wickedness; When there are enough flaws in the nature of the other person. If by worshiping the first step of Gayatri, we have made our nature soulful and sweet, then the fierceness of bad people cannot last long. They, too, can be melted down with goodwill and made the most of the little goodness they have. Growth is life and hesitation is death, love is development and selfishness is hesitation, therefore love is the only rule of life. He who loves lives; He who is selfish dies. Therefore love only for love's sake; Because love is the only law of life.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...