अपमान
क्रोध एक प्रकार का आवेश-उन्माद है, जिससे ग्रसित होकर व्यक्ति पूर्वाग्रह अत्यधिक जोर देने लगता है और कथन को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेता है। इसकी प्रतिक्रिया सामने वाले पर भी वैसी ही होती है। वह गलती अनुभव करते हुए भी उसे मानने में अपनी हेठी और हार अनुभव करता है। इसके लिए किसी को भी दबाया जाना कठिन है। दबाव से तत्कालीन शांति हो जाने पर भी भीतर-ही-भीतर अपमान की आग सुलगती रहती है। समय आने पर चिनगारी बड़े दावानल के रूप में उमड़ पड़ती है। हमें इसी संसार में रहना है तो मिल-जुलकर रहने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं। इसलिए यह आवश्यक है कि नम्रता सीखें और मधुर वचन बोलने का अभ्यास करें।
Anger is a kind of hysteria, due to which the person's prejudice starts to be emphasized excessively and makes the statement a question of prestige. Its reaction is the same on the front. Even after realizing the mistake, he feels his stubbornness and defeat in accepting it. It's hard to press anyone for that. Even when there is temporary peace due to pressure, the fire of humiliation keeps on burning inside. When the time comes, the spark rises in the form of a big fire. We have to live in this world, so there is no option but to live together. That's why it is necessary to learn humility and practice speaking sweet words.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...