प्रोत्साहन
कार्यकर्ताओं को अपने दोषों को सुधारने के साथ गुणों के विकास की दिशा भी देनी चाहिए। उन गुणों के विकास को सबके सामने प्रोत्साहन दिया जाए तो लोकसेवी की सुधार-चेष्टा में और भी प्रखरता आ जाती है। जनसंपर्क के समय शिष्ट एवं शालीन व्यवहार तथा प्रशंसा और प्रोत्साहन के साथ-साथ लोकसेवी को चर्चा-संवाद में धैर्यवान भी होना चाहिए। प्रशंसा से प्रोत्साहन तो मिले, पर उसके कारण अहंकार न जागे, इसलिए प्रशंसित व्यक्ति की न किसी से तुलना की जाए और न ही उसके दोषों को गुणों के रूप में बखान किया जाए।
Along with rectifying their faults, the workers should also be given direction for the development of their qualities. If the development of those qualities is encouraged in front of everyone, then there is more intensity in the improvement efforts of the public servant. Along with polite and courteous behavior and praise and encouragement at the time of public relations, the public servant should also be patient in discussion and dialogue. Praise may encourage, but ego should not arise due to it, so neither the praised person should be compared with anyone nor his faults should be described as virtues.(Edited)Restore original
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...