पवित्र सत्ता
मनुष्य जब तक इस आत्मबल को समझ नहीं लेता, वह ईश्वर की परम पवित्र सत्ता से भी जुड़ नहीं पाता। परमात्मा की दिव्य सत्ता की न तो उसे अनुभूति होती है और न ही उसका सहयोग प्राप्त हो पाता है। उसके कर्मों पर किसी का भी नियंत्रण नहीं रहता और लोभ, मोह, स्वार्थ आदि के मकड़जाल में फँसकर उसका जीवन सर्वनाश के मार्ग पर लुढ़कने लगता है। यह अज्ञान ही उसकी समस्त व्याधियों का स्त्रोत है, जो उसकी प्रगति में बाधक बनता है। हमें इस अज्ञान को त्यागकर आत्मबल के विकास का प्रयास करते रहना चाहिए।
Unless man understands this self-power, he cannot even connect with the Supreme Being of God. He neither feels nor gets his help from the divine power of God. No one has control over his actions and his life starts rolling on the path of annihilation by getting trapped in the web of greed, attachment, selfishness etc. This ignorance is the source of all his ailments, which hinders his progress. We should renounce this ignorance and try to develop self-confidence.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...