सुख-शांति
किसी भी कार्य की सिद्धि अभ्यास से ही हो सकती है, मैं किसी महान आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. की पुस्तक पढ़ रही थी जिसमें वर्णित था कि यदि हम सुख-शांति, चैन-अमन, उसे क्रियाओं में उतार कर अपने आचरण को शुद्ध एवं दृढ़ बनाना होगा, निरंतर अभ्यास करने से असंभव को भी संभव में बदला जा सकता है। प्रत्येक अच्छा कार्य सफल तभी होगा जब उसके प्रति हम निरंतर अभ्यास करते रहेंगे। मनुष्य भले ही अनेकानेक शुभ संस्कारों का धनी बन जाये किन्तु उन्हें कायम रखने के लिये अगर वह क्रिया के रूप में उनका अभ्यास नहीं करेगा तो वे संस्कार उसके लिये लाभप्रद नहीं हो सकेंगे।
Accomplishment of any work can be done only by practice, I am a great Acharya Samrat Shri Anand Rishi Ji M.S. I was reading the book of V.K., in which it was mentioned that if we want happiness, peace and peace, we have to make our conduct pure and firm by putting it into action, by continuous practice the impossible can also be converted into possible. Every good deed will be successful only when we keep practicing towards it. A man may become rich in many auspicious rituals, but if he does not practice them in the form of action to maintain them, then those rituals will not be beneficial for him.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...