मानव शरीर के प्रत्येक ऐच्छिक कार्य-कलाप का आधार जैसे कोई मानसिक प्रक्रिया होती है, उसी प्रकार संसार के प्रत्येक सामाजिक संगठन का भी कोई दार्शनिक आधार होता है और उसकी सम्पूर्णता के अनुपात से कार्यकारण सरणि द्वारा कार्य की पूर्ति होती है।उदाहरणार्थ संसार के प्रत्येक मत और सम्प्रदाय हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, कम्युनिष्ट आदि के दार्शनिक आधार पुराण, कुरान, बाइबिल, कैपिटल आदि ग्रन्थ हैं।
Ved Katha Pravachan -5 (Rashtra & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha
Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik
Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
कृपया Subscribe अवश्य करें, ताकि आपको नये वीडियो प्राप्त होते रहें।
उनके गुण-दोषों के अनुसार ही उनके अनुयायी भी होते हैं। आर्य समाज का मूलाधार वेद हैं, जो संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ माने जाते हैं और जो ब्राह्म-साक्षी में मतभेद तथा संशय होने पर भी अन्त:साक्षी के अनुसार मानुषी सृष्टि के आदि से वर्तमान हैं। आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती स्पष्ट घोषणा करते हैं कि- "मेरा कोई नवीन कल्पना व मतमतान्तर चलाने का लेशमात्र भी अभिप्राय: नहीं है। किन्तु जो सत्य है उसको मानना-मनवाना और जो असत्य है उसको छोड़ना-छुड़वाना मुझको अभीष्ट है।" (स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश) और "जो वेदादि सत्यशास्त्र और ब्रह्मा से लेकर जैमिनिमुनि पर्य्यन्तों के माने हुए ईश्वरादि पदार्थ हैं, जिनको मैं भी मानता हूँ, सब सज्जन महाशयों के सामने प्रकाशित करता हूँ। मैं अपना मन्तव्य उसी को मानता हूँ जो तीनों काल में सबको एकसा मानने योग्य है।" तात्पर्य यह कि महर्षि ने आर्य समाज का मूलाधार वेद निश्चित किया है। वे वैदिक धर्म के ही पुनरुद्धारक थे। भक्तों द्वारा पूछे जाने पर कि हम अपना धर्म क्या बतावें, महर्षि का स्पष्ट निर्देश था कि "तुम अपना धर्म वेद ही बताओ।" मुरादाबाद में महर्षि ने अपने अनुयायियों से कहा था कि- "भाई ! तुम सबका वेद मत है। यदि ऐसा कहोगे कि हम दयानन्द स्वामी के मत में हैं, तो कोई तुमसे प्रश्न करेगा कि दयानन्द स्वामी और उनके गुरु का क्या मत है, तो तुम उत्तर नहीं दे सकोगे।" (देखें, पं. लेखराम कृत महर्षि दयानन्द का जीवन चरित्र) महर्षि स्वयं को भी वैदिक धर्म का ही उपदेशक अथवा प्रचारक ही मानते थे। 19 मार्च सन् 1877 को कर्नल अलकाट के नाम अपने पत्र में महर्षि लिखते हैं- "मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार वेद का उपदेश करता हूँ। सिवाय उपदेश के मैं कुछ अधिकार नहीं चाहता। तुम मुझको कहीं सभासद लिख देते हो, कहीं कुछ लिख देते हो। मैं कुछ बड़ाई और प्रतिष्ठा नहीं चाहता।" (दयानन्द सिद्धान्त भास्कर) इतिहास साक्षी है कि लोगों ने उन्हें संस्थापक की पदवी से विभूषित करना चाहा, किन्तु उन्होंने साफ मना कर दिया। और जब लोगों ने उन्हें आर्य समाज का "परमसहायक" कहना चाहा तो उनका उत्तर था - "यदि मुझे परमसहायक मानोगे तो उस परम-पिता परमेश्वर को क्या कहोगे? परम सहायक तो जगदीश्वर ही है। हॉं, यदि आप मेरा नाम लिखना ही चाहते हैं तो सहायकों की पंक्ति में लिख लीजिए।" (श्रीमद्दयानन्द प्रकाश) इस पर श्रीयुत इन्द्र विद्यावाचस्पति ठीक ही लिखते हैं-"यही ऋषि दयानन्द का ऋषिपन था, जिन लोगों को मौका मिला, वे पैगम्बर और रसूल बनने में नहीं कतराये। जिन्हें इतनी बड़ी हिम्मत न हुई, वे आचार्य या नबी बन गए। ऋषि का ही हृदय था कि आचार्य, गुरु या परम सहायक तक के पदों को न स्वीकार किया। कारण यही था कि ऋषि दयानन्द अपने को परमात्मा के ज्ञान का प्रचारक, सत्य का साधनमात्र समझते थे, इससे अधिक कुछ नहीं। वहॉं न बड़प्पन की चाह थी, न गुरुपन की बू। वहॉं तो एक ईश्वर पर विश्वास था और सत्य पर अटल श्रद्धा थी। यही कारण था कि इस वीर की एक ही गरज से सदियों के खड़े गुरुडम के गढ हिल जाते थे और झुक जाते थे।" (आर्य समाज का इतिहास-प्रथम भाग) सत्य तो यह है कि आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कोई नयी बात नहीं कहीं, प्रत्युत ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनि पर्यन्त प्राचीन ऋषि महर्षि जो कुछ भी कहते आये, काल-क्रम से उस पर पड़े आवरण को हटा कर उन्होंने उसी उद्घोष को दोहराया और वेद प्रतिपादित शाश्वत सत्य, सनातन धर्म की रक्षा के लिए आर्यसमाज की स्थापना की। इस दृष्टि से आर्य समाज को कोई पृथक मत मजहब या सम्प्रदाय न कहकर एक ऐसा आन्दोलन कहना चाहिए, जो बुद्धिवाद का आश्रय लेकर वैदिक धर्म के शुद्ध स्वरूप को जनता के सामने उपस्थित करता है। इसलिए यदि आर्य समाज को समझना हो तो वैदिक सत्य शास्त्रों में प्रतिपादित सचाइयों को समझना पर्याप्त है।" (पं. क्षितीश कुमार वेदालंकार, आर्य समाज की विचारधारा) अत: सिद्ध है कि आर्य समाज का मूलाधार वेद है एवं वेद के प्रचार के लिए ही आर्य समाज की स्थापना की गई थी।
आर्य समाज वेद को ईश्वरीय ज्ञान की मान्यता देता है। वैसे मानने को तो संसार के प्राय: सभी मतावलम्बी अपने-अपने धर्म ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान ही मानते हैं। अत: यह निर्णय कैसे किया जाये कि वस्तुत: ईश्वरीय ज्ञान कौन-सा है? आर्य समाज का पक्ष है कि ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता सृष्टि के आरम्भ में ही हुआ करती है और वह ज्ञान अपने में सम्पूर्ण होता है। उसमें कोई कमी अथवा न्यूनता नहीं होती कि जिसकी पूर्ति, किसी पूरक ज्ञान द्वारा किसी विशेष संदेशवाहक द्वारा की जाती हो। इस सम्बन्ध में महात्मा नारायण स्वामी जी का लेख है कि- "एक पक्ष यह कहता है कि मनुष्य को ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता प्रारम्भ में होती है और हो सकती है, जबकि मनुष्य केवल नैसर्गिक ज्ञान रखते और नैमित्तिक ज्ञान से शून्य होते हैं। वेद और उनका प्रचारक आर्य समाज इसी वाद की पुष्टि करता है। दूसरा पक्ष यह कहता है कि समय-समय पर ईश्वर मनुष्यों को ज्ञान दिया करता है। ब्राह्मसमाज आदि इस दूसरे वाद के सर्मथक हैं।" इसी कारण आर्य समाज एवं महर्षि दयानन्द ब्राह्म समाज से सहयोग नहीं कर सके। डा. लक्ष्मी नारायण गुप्त का यही मत है। यथा- "ब्राह्मसमाज और आर्य समाज के एक सूत्र में आबद्ध होने में मुख्य बाधा इस बात से हुई कि प्रथम संस्था को वेद मान्य न थे। स्वामी दयानन्द ने वेद को मूलाधार मानकर वैदिक धर्म का विकसित मान्य और सामयिक रूप जनता के समक्ष रखा।" (हिन्दी भाषा और साहित्य को आर्य समाज की देन) सन् 1876 ई. के दिसम्बर मास के अन्तिम दिनों में महर्षि दयानन्द दिल्ली दरबार के अवसर पर देश भर के प्रमुख सुधारकों को एकत्र करके एकता का प्रयास करते दिखाई देते हैं। (देखें - लाला लाजपत राय कृत महर्षि जीवन चरित्र) किन्तु वहॉं भी इसी विषय को लेकर एकता स्थापित न हो सकी। अत: प्रश्न उठता है कि वेद में ऐसी क्या विशेषता है कि केवल वही ईश्वरीय ज्ञान ठहरता है? - आचार्यडॉ.संजयदेव
Contact for more info. -
राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
--------------------------------------
National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
www.allindiaaryasamaj.com
Every voluntary activity of the human body is the basis of a mental process, just as every social organization in the world also has a philosophical basis and the proportion of its entirety is accomplished by a working array. The philosophical foundation of Hinduism, Muslim, Christian, communal etc. are texts like Puran, Quran, Bible, Capital etc.
Vedas and Arya Samaj -1 | Arya Samaj Online Indore | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya samaj | Vedic Dharma | Principles of Arya Samaj | Arya Samaj Mandir New Delhi | Arya Samaj Marriage in New Delhi | Arya Samaj Mandir in Mumbai | Arya Samaj Marriage in Indore - Bhopal - Jabalpur - Bilaspur - Raipur Chhattisgarh | Arya Samaj Marriage in Mumbai Maharashtra | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage in Ujjain | Arya Samaj Online | Vedas | Vastu correction without demolition | Vastu Shanti Yagya | Griha Pravesh Yagya | Gayatri Havan | Mantra Jaap.
Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | traditional Vedic rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.
Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.
Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर
स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति,...
निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर...