आत्मविश्वास को अपनाकर जीने वाले अपनी सफलता को ईश्वरीय अनुदान मानते हैं। इसे औरों में बाँटने, अपने श्रेय, समृद्धि व सम्मान के द्वारा दूसरों की पीड़ा निवारण के लिए वे भरसक कोशिश करते हैं। सफलता के लिए उनका संघर्ष एक सद्गुण संवर्द्धन की प्रक्रिया बन जाता है, जबकि विफलताएँ उन्हें अपने दुरुगुणों को पहचानने में और उन्हें दूर करने में मददगार होती हैं। जिस किसी तरह से सफलता, श्रेय, यश अथवा सम्मान हथिया लेने की प्रवृत्ति उनमें नहीं होती। यह अलग बात है कि उनकी आंतरिक शक्तियों के चुंबकत्व के कारण ये सभी तत्व अपने आप ही उन तक खींचे चले जाते हैं।
Those who live by adopting self-confidence consider their success as a divine grant. They try their best to share it with others, to relieve the suffering of others by their credit, prosperity and respect. Their struggle for success becomes a process of cultivating virtue, while failures help them to recognize their vices and overcome them. They do not have the tendency to grab success, credit, fame or respect in any way. It is a different matter that due to the magnetism of their internal forces, all these elements are automatically drawn to them.
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स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति,...
निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर...