स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार
स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति, उपनिषदों, दर्शनों, वेदांगों व वेद के ज्ञान सहित दुर्लभ ज्ञान दण्डी गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती के शिष्यत्व में प्राप्त किया। उनकी प्रेरणा व आज्ञा से अपने विवेक से उन्होंने अज्ञान, अन्धविश्वास, कुरीतियां, सामाजिक असमानता व विषमता, देश सुधार व देशोन्नति का कोई कार्य छोड़ा नहीं, अपितु सभी कार्यों को प्राणपण से किया। इन सब कार्यों का आधार उनका वैदिक ज्ञान था। क्योंकि सभी सुधारों का आधार वेदाध्ययन, वेदाचारण व वेद प्रचार ही है।
Swami Dayanand left his home in search of truth at the age of 22. He travelled the entire country and served all the Gurus he met and gained immense knowledge through his extraordinary intellectual abilities. He became a Siddha Yogi and acquired the rare knowledge of Sanskrit language's Arsha Grammar system, Upanishads, philosophies, Vedangas and Vedas under the discipleship of Guru Prajnachakshu Swami Virjanand Saraswati.
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निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर...