हम व्रतशील तो बनें, संकल्प लें, प्रतिज्ञाएँ भी करें, परंतु वे सभी विवेकपूर्ण और दूरदर्शिता युक्त हों। आवेश में की हुई हठवादिता को जितना जल्दी उल्टा जा सके उतना ही अच्छा है। संत-महापुरुषों का जीवन-चरित्र जिनने गम्भीरतापूर्वक पढ़ा है, वे जानते हैं कि संत ज्ञानेश्वर के पिताजी ने गृहस्थ के उत्तरदायित्व को अधूरा छोड़कर सन्यास ले लिया था। उनके गुरुदेव स्वामी रामानंद को जब वस्तुस्थिति विदित हुई तो उन्हें पुनः गृहस्थ धर्म में प्रवेश करने का आदेश दिया और संन्यास छुड़ा दिया। इसमें वचनभंग का दोष तो आता है, पर उससे बड़ा व्रत निभता है - भूलसुधार का।
Let us fast, take resolutions, make vows as well, but all of them should be prudent and visionary. The sooner impulsive dogmatism can be reversed, the better. Those who have read the life-characters of saints and great men seriously, they know that the father of Saint Dnyaneshwar had retired leaving the responsibility of a householder incomplete. When his Gurudev Swami Ramanand came to know about the situation, he ordered him to re-enter the householder's religion and freed him from retirement. There is a fault of breach of promise in this, but a bigger duty is to be followed - that of rectification.
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स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति,...
निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर...