वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द
महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं। सृष्टि के आरम्भ से वर्तमान युग तक ऐसा वेद प्रचारक होने का अन्य कहीं वर्णन नहीं मिलता है। उनका वेद प्रचार का कार्य संसार के कल्याण की दृष्टि से सर्वोत्तम कार्य है। मनुष्य जीवन में वेद प्रचार का कार्य करना ईश्वर का ही कार्य होता है। इसलिए अपने कल्याण की इच्छा करने वाले सभी मनुष्यों को वैदिक साधना के साथ वेदाध्ययन व वेद प्रचार को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिये। मानव समाज द्वारा योग्य वेद प्रचारकों का सर्वाधिक सम्मान व उनकी आर्थिक आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाना चाहिये। देश व संसार में जितना अधिक वेदप्रचार होगा उतना ही मानवता का हित होगा। यह कार्य ईश्वर का कार्य होने के साथ मानव जाति की समग्र उन्नति व सुख शान्ति का कार्य है। इसको समाज में मुख्य स्थान मिलना चाहिये।
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