देवात्मा एवं परमात्मा
आत्मपरिष्कार के उच्चस्तर पर पहुँच जाने के उपरान्त अभावों, उद्वेगों से छुटकारा मिल जाता है। परम सन्तोष का, परम आनंद का लाभ मिलने लगने की स्थिति आनंदमय कोश की जाग्रति कहलाती है। ऐसे ब्रम्हवेत्ता अस्थि-मांस के शरीर में रहते हए भी ऋषि, तत्वदर्शी, देवात्मा एवं परमात्मा स्तर का उठा हुआ सर्वसाधारण को प्रतीत होता है। उसकी चेतना का, व्यक्तित्व का स्वरूप, सामान्य नर-वानरों की तुलना में अत्यधिक परिष्कृत होता है, तदनुसार वे अपने में आनंदित रहते और दूसरों को प्रकाश बाँटते हैं।
After reaching the highest level of self-reflection, one gets rid of the desires, the urges. The state of attainment of ultimate contentment, of attainment of ultimate bliss is called awakening of anandamaya kosha. Such a Brahmaveta, while living in a bone-meat body, appears to the common man to have risen to the level of sage, tattvdarshi, deity and the Supreme Soul. The nature of his consciousness, personality, is more refined than that of the normal male apes, accordingly they enjoy themselves and share light to others.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...