अहंकार ही अनर्थ
अहंकार हमेशा ही अनर्थ करता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, हर जगह इस सत्य की प्रकट अनुभूति की जा सकती है। व्यक्तिगत जीवन में इसी से तनाव पनपता है। पारिवारिक जीवन में इसी वजह से क्लेश व विग्रह उपजते हैं। पति स्वयं को पत्नी से श्रेष्ठ समझता है, इसीलिए तरह-तरह से उस पर अपना प्रभुत्व जमाता है। ऐसे में पत्नी का स्वभाव यदि समझौतावादी हुआ तो वह पति के अहंकार को जिस किसी तरह से निभा लेती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यह स्थिति हमेशा बनी रहती है। यदि पत्नी में अहंता के बीज हैं, तो फिर नित्य का क्लेश, परिवार के वातावरण को नरक बना डालता है।
The ego always hurts. This truth can be manifested everywhere in any sphere of life. This creates tension in personal life. Due to this reason, troubles and attachments arise in family life. The husband considers himself superior to the wife, that is why he exerts his dominance over her in various ways. In such a situation, if the nature of the wife becomes compromising, then in whatever way she manages the ego of the husband, but it does not mean that this situation remains always. If the wife has the seeds of egoism, then the continual tribulation makes the family environment hell.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...