सूर्य के गुणों का वर्णन
महाभारत काल में विकसित हो रहे सूर्य-उपासना के संप्रदाय पौराणिक काल में विकसित हुए। पुराण काल में सूर्य मंदिर, सूर्य प्रतिमाओं, सूर्य तीर्थ, सूर्य भक्त व्रत एवं तप तथा सौर धर्म के व्यापक विवरण मिलते हैं। मार्कंडेय पुराण सूर्य के गुणों का वर्णन करते हुए इसे ज्ञान का सागर, अंधकार का भंजन, ईश्वर एवं सृष्टि का कारण बताता है। अग्नि पुराण सूर्य को भगवान विष्णु की अभिव्यक्ति एवं समस्त कार्यों का मूल कारण बताता है।
The sects of sun-worship developing in the Mahabharata period developed in the Puranic period. In the Purana period, extensive descriptions of the Sun Temple, Sun idols, Surya Tirtha, Surya Bhakta Vrat and Tapas and Solar Dharma are found. Markandeya Purana, describing the qualities of the Sun, describes it as the ocean of knowledge, the dissolution of darkness, the cause of God and creation. The Agni Purana describes the Sun as the manifestation of Lord Vishnu and the root cause of all actions.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...