पुरातनकाल
अतीतकाल में भारत देवमानवों की देवभूमि माना जाता रहा है। इसका कारण यहाँ जन्मने वालों के काय-कलेवर सम्बन्धी विशेषता से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। शरीरों की रचना जैसी पुरातनकाल में थी, वैसी ही अब भी है। सच तो यह है कि साधन-सुविधाओं की दृष्टि से हम अपने पूर्वजों की तुलना में कहीं अधिक सुसम्पन्न हैं। कमी है तो मात्र सुसंस्कारिता की। इस आभाव के कारण ही व्यक्ति हर दृष्टि से दीन-हीन हो गया है। धूर्तता, वितृष्णा जैसी दुर्गुणों के कारण व्यक्ति सम्पन्न और शिक्षित कहाते हुए भी असंतोष और उद्वेग से हर घड़ी घिरा रहता है। स्वयं बेचैन रहता है और अपने सम्पर्क-क्षेत्र में आने वाले हर किसी को चैन से नहीं रहने देता।
In the past, India has been considered as the land of gods. The reason for this has nothing to do with the physical characteristics of those born here. The composition of the bodies is the same as it was in ancient times. The truth is that in terms of resources and facilities, we are far more prosperous than our forefathers. The only thing lacking is good manners. Because of this lack, the person has become poor in every sense. Due to bad qualities like slyness, vitrishna, a person is surrounded by dissatisfaction and anxiety every moment even though he is said to be prosperous and educated. He himself remains restless and does not let everyone who comes in his contact zone be at peace.
Antiquity | Arya Samaj Kota, 8120018052 | Arya Samaj Hindu Temple Kota | Arya Samaj Marriage Guidelines Kota | Arya Samaj Vivah Kota | Inter Caste Marriage Kota | Marriage Service by Arya Samaj Mandir Kota | Arya Samaj Marriage Helpline Kota | Arya Samaj Vivah Lagan Kota | Inter Caste Marriage Consultant Kota | Marriage Service in Arya Samaj Kota | Arya Samaj Inter Caste Marriage Kota | Arya Samaj Marriage Kota | Arya Samaj Vivah Mandap Kota | Inter Caste Marriage Helpline Kota | Marriage Service in Arya Samaj Mandir Kota | Arya Samaj Intercaste Marriage Kota | Arya Samaj Marriage Pandits Kota | Arya Samaj Vivah Pooja Kota | Inter Caste Marriage helpline Conductor Kota Rajasthan
वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...