थाली में कभी भी जूठा भोजन नहीं छोड़ना चाहिए। थाली में उतना ही भोजन लें, जितना आप आराम से खा सकें। भोजन को कूड़े में फेंकना अन्न का अपमान है। सदैव हाथ, पैर और मुँह धोकर ही भोजन करना चाहिए। खाना शुरू करने से पहले भगवान का ध्यान कर उन्हें भोग जरूर लगायें। भोजन थाली के चारों तरफ पानी छिड़कना चाहिए, जिससे कीट आदि भोजन की थाली से दूर रहें। खाना शुद्ध जगह पर ही बनाना चाहिए। माता, पत्नी और कन्या के द्वारा बनाया गया भोजन ही शुद्ध और वृद्धि करने वाला माना गया है। सबसे पहले भोजन-सामग्री अग्निदेव को समर्पित करनी चाहिए। इसके बाद गाय, कुत्ते, कौए, चींटी और देवताओं के लिए भोजन-ग्रास निकालना चाहिए। इसके बाद यदि घर में कोई मेहमान आया हो, तो उसे भोजन कराना चाहिए। इसके बाद खाना कैसा भी बना हो, उसे प्रसाद समझकर खुद ग्रहण करना चाहिए।
One should never leave leftover food in the plate. Take as much food in the plate as you can comfortably eat. Throwing food in the garbage is an insult to food. Food should always be taken after washing hands, feet and mouth. Before starting to eat, meditate on God and offer him bhog. Water should be sprinkled around the food plate, so that insects etc. stay away from the food plate. Food should be prepared in a pure place only. Only food prepared by mother, wife and daughter is considered pure and nourishing. First of all the food items should be dedicated to Agnidev. After this, food-gras should be taken out for cows, dogs, crows, ants and gods. After this, if any guest has come to the house, he should be served food. After this, no matter how the food is prepared, it should be consumed as Prasad.
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समस्त विद्याएं भारत से संसार में फैले विभिन्न मतमतान्तरों का स्त्रोत भारत देश ही रहा है। संस्कृत की महिमा में महर्षि दयानन्द ने दाराशिकोह का एक उदाहरण दिया है। दाराशिकोह लिखता है कि मैंने अरबी आदि बहुत सी भाषाएं पढी, परन्तु मेरे मन का सन्देह छूटकर आनन्द नहीं हुआ। जब संस्कृत देखा और सुना तब...
स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति,...
निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर...