निर्णय लेने की प्रक्रिया में समय की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जो निर्णय समय रहते ले लिए जाते हैं और आचरण में लाए जाते हैं, वे अपना आश्चर्यजनक परिणाम दिखाते हैं। जबकि समय सीमा के बाहर एक सेकण्ड का विलम्ब भी भयंकर हानि पहुँचाने का कार्य कर सकता है। इसलिए फैसले लेने के लिए सही समय पर कार्य करना अत्यन्त आवश्यक है।
मेंढक के शरीर में एक खास बात यह होती है कि वह अपने शरीर के तापमान को वातावरण के अनुरूप परिवर्तित कर सकता है। इसलिए यदि किसी मेंढक को धीरे-धीरे गरम हो रहे पानी के बरतन में छोड़ दिया जाए तो वह तापमान के हिसाब से खुद को आसानी से समायोजित कर लेता है। जैसे-जैसे पानी का तापमान बढता जाता है, मेंढक अपनी सारी ऊर्जा को प्रतिकूल हो रही परिस्थितियों के साथ समायोजित करने में, एडजस्ट करने में लगा देता है। यह प्रक्रिया पानी के उबलना शुरु होने तक चलती रहती है। यहाँ तक पानी का तापमान और मेंढक के शरीर का तापमान लगभग बराबर हो जाता है। लेकिन इसके आगे मेंढक की ऊर्जा समाप्त हो जाती है और फिर उसकी कोशिश होती है पानी के बरतन के बाहर आने की। परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। देखा जाए तो मेंढक में इतनी क्षमता होती है कि वह प्रारंभ में ही पानी से कूदकर बाहर आ सकता है, लेकिन स्वयं को समायोजित करने की प्रक्रिया में वह अपनी पूरी क्षमता गँवा देता है और यही कारण होता है कि मेंढक गरम होते पानी के एक छोटे से बरतन से बाहर नहीं कूद पाता, क्योंकि उसने सही समय पर बाहर कूदने का निर्णय नहीं लिया। इसलिए स्पष्ट है कि सही और समय पर निर्णय लेना ही सफलता का मूलमंत्र है।
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स्वामी दयानन्द द्वारा वेद प्रचार स्वामी दयानन्द सत्य की खोज में अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में घर से निकले पड़े थे। पूरे देश का भ्रमण करते हुए मिलने वाले सभी गुरुओं की संगति व सेवा करके अपनी अपूर्व बौद्धिक क्षमताओं से उन्होंने अपूर्व ज्ञान प्राप्त किया था। वह सिद्ध योगी बने और उन्होंने संस्कृत भाषा की आर्ष व्याकरण पद्धति,...
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