अतीत की यादें
अतीत के पन्नों खोया हुआ मन, अतीत को खोकर वर्तमान को भी खोता रहता है, क्योंकि वह वर्तमान के क्षण को जी नहीं पाता है। इस दुरवस्था में वह वर्तमान को खोता चला जाता है। एक और बात है कि यदि अतीत की यादें सुनहली, सुखद एवं स्वर्णिम हों तो वर्तमान के लिए प्रेरणादायी हो सकती हैं। वर्तमान उस सुनहले अतीत से सीख ले सकता है, प्रेरित हो सकता है और उसके आधार पर अपने वर्तमान क्षण का श्रेष्ठतम सदुपयोग कर सकता है। परंतु ऐसा होता कम है; क्योंकि हमारा मन अतीत की सुकोमल यादों को इतना याद नहीं करता, जितना कि उसकी कडुई यादों की कडुआहट से चिपका रहता है। इसलिए हैं कि मन दुःख से चिपकता रहता है, उसे छोड़ता ही नहीं है।
The mind, lost in the pages of the past, loses the past and keeps on losing the present as well, because it cannot live the present moment. In this condition he goes on losing the present. Another thing is that if the memories of the past are golden, pleasant and golden, then they can be inspirational for the present. The present can learn from that golden past, be inspired and based on that, make the best use of its present moment. But this happens rarely; Because our mind does not remember the soft memories of the past so much as it clings to the bitterness of its bitter memories. It is because the mind clings to sorrow, it does not leave it.
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...