Kota Arya Samaj Bargu | Arya Samaj Mandir Marriage Conductor Kota Rajasthan for Barod - Gandi Phali - Naya Gaon - Bamoolya Jageer Kota - Jaisalmer - Raniwara Jalor RJ
स्वभाव में रमण वस्तुतः कठिन है। प्रकृतिजन्य शरीर में बंधी हुई आत्मा के स्वभाव में अवरोध पैदा होता है अज्ञान के कारण। अज्ञानवश मनुष्य शरीर को ही सब कुछ मान लेता है अतः इन्द्रिय तुष्टि की ओर अग्रसर हो जाता है। तब शरीर, जो आत्मा का वाहन है, आत्मा के स्वाभाविक गुणों को प्रकट नहीं होने देता। आर्यसमाज विवाह हेतु आवश्यक दस्तावेज एवं जानकारी आर्यसमाज द्वारा सम्पन्न होने वाले विवाह "आर्य विवाह मान्यता अधिनियम-1937, अधिनियम क्रमांक 1937 का 19' के अन्तर्गत कानूनी मान्यता प्राप्त हैं। अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा वैवाहिक जोड़ों की कानूनी सुरक्षा (Legal Sefety) एवं पुलिस संरक्षण (Police Protection) हेतु नियमित मार्गदर्शन (Legal Advice) दिया जाता है। 1. वर-वधु दोनों के जन्म प्रमाण हेतु हाई स्कूल की अंकसूची या कोई शासकीय दस्तावेज तथा पहचान हेतु मतदाता परिचय पत्र या आधार कार्ड अथवा पासपोर्ट या अन्य कोई शासकीय दस्तावेज चाहिए। विवाह हेतु वर की अवस्था 21 वर्ष से अधिक तथा वधु की अवस्था 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। 2. वर-वधु दोनों को निर्धारित प्रारूप में ट्रस्ट द्वारा नियुक्त नोटरी द्वारा सत्यापित शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा। किसी अन्य नोटरी से सत्यापित शपथ पत्र स्वीकार नहीं किये जावेंगे। 3. वर-वधु दोनों की अलग-अलग पासपोर्ट साईज की 6-6 फोटो। 4. दोनों पक्षों से दो-दो मिलाकर कुल चार गवाह, परिचय-पहचान पत्र सहित। गवाहों की अवस्था 21 वर्ष से अधिक हो तथा वे हिन्दू-जैन-बौद्ध या सिक्ख होने चाहिएं। 5. विधवा / विधुर होने की स्थिति में पति/पत्नी का मृत्यु प्रमाण पत्र तथा तलाकशुदा होने की स्थिति में तलाकनामा (डिक्री) आवश्यक है। 6. वर-वधु का परस्पर गोत्र अलग-अलग होना चाहिए तथा हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार कोई निषिद्ध रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए। शादी-माफ़िया दलालों से सावधान- कोटा, दिल्ली, नोएडा, गाज़ियाबाद, जयपुर, भोपाल, इन्दौर, रायपुर, लखनऊ, चण्डीगढ़, मुम्बई, हैदराबाद आदि बड़े शहरों में वकीलों एवं दलालों के शादी-माफिया के रूप में ऐसे अनेक गिरोह सक्रिय हैं, जो भारत के सभी शहरों में इण्टरनेट, सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों के माध्यम से Arya Samaj, Arya Samaj Mandir, Arya Samaj Marriage, Same Day Court Marriage, Legal Marriage, Love Marriage, Head Office और प्रादेशिक कार्यालय तथा इससे मिलते जुलते नामों से आकर्षक विज्ञापन देकर भोले-भाले युवक-युवतियों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें गुमराह कर रहे हैं। Fake Location Map बनाने तथा किसी भी शहर में किसी भी मन्दिर के Location Map पर अपना illegal photo एवं illegal Mobile Phone नम्बर डालने में इनको महारत हासिल हैं। प्रेम विवाह के इच्छुक युवक-युवतियाँ इनके जाल में आसानी से फँस जाते हैं। सही मार्गदर्शन के अभाव में ऎसे युवक-युवतियाँ गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं। बाद में पछताने के अलावा इनके पास कुछ नहीं बचता। आर्यसमाज विवाह करने हेतु समस्त जानकारियां फोन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह सम्बन्धी जानकारी या पूछताछ के लिए आप मो.- 8120018052 पर (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक) श्री देव शास्त्री से निसंकोच बात कर समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जिस दिन विवाह करना हो उस मनचाहे दिन की बुकिंग आप फोन पर करा सकते हैं। फोन द्वारा बुकिंग करने के लिए वर-वधू का नाम पता और विवाह की निर्धारित तिथि बताना आवश्यक है। युगलों की सुरक्षा - प्रेमी युगलों की सुरक्षा एवं गोपनीयता की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए तथा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेमी युगलों की सुरक्षा सम्बन्धी दिये गये दिशा-निर्देशों के अनुपालन के अनुक्रम में हमारे आर्य समाज द्वारा विवाह के पूर्व या पश्चात वर एवं वधू की गोपनीयता एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विवाह से सम्बन्धित कोई भी काग़जात, सूचना या जानकारी वर अथवा वधू के घर या उनके माता-पिता को नहीं भेजी जाती है, जिससे विवाह करने वाले युगलों की पहचान को गोपनीय बनाये रखा जा सके, ताकि उनके जीवन की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न न हो सके। विशेष सूचना- इण्टरनेट, सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों में प्रसारित हो रहे अनेक फर्जी वेबसाइट एवं आकर्षक विज्ञापनों को ध्यान में रखते हुए जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह शासन द्वारा मान्य एवं लिखित अनुमति प्राप्त वैधानिक है अथवा नहीं। इसके लिए सम्बन्धित संस्था को शासन द्वारा प्रदत्त आर्य समाज विधि से अन्तरजातीय आदर्श विवाह करा सकने हेतु लिखित अनुमति अवश्य देख लें, ताकि आपके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी ना हो। "आर्यसमाज विवाह सहायता" अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा संचालित है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट एक सामाजिक-शैक्षणिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आप यह सुनिश्चित कर लें कि आपका विवाह शासन (सरकार) द्वारा आर्यसमाज विवाह कराने हेतु मान्य रजिस्टर्ड संस्था में हो रहा है या नहीं। आर्यसमाज होने का दावा करने वाले किसी बडे भवन, हॉल या चमकदार ऑफिस को देखकर गुमराह और भ्रमित ना हों। अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें - आर्य समाज मैरिज हेल्पलाइन राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
(समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक)
Helpline: 8120018052
www.aryasamajrajasthan.com
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर, दिव्ययुग परिसर
बैंक कॉलोनी, अन्नपूर्णा रोड
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 452009
फोन : 0731-2489383, 8989738486
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स्व में स्थित होने के लिये यह समझना आवश्यक है कि हम आत्मा हैं शरीर नहीं, शरीर तो आत्मा का एक उपकरण मात्र है। साधना के द्वारा हम स्वभाव में रहने की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम अपने स्वाभाविक धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। सत्य हमारा स्वाभाविक धर्म है। यदि कोई व्यक्ति असत्य का आचरण करता है तो समाज में उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो जायेगी। उसे लोक व्यवहार में कठिनाई आयेगी। किन्तु यदि पूरा ही असत्याचरण पर उतर आयेगा तो उसका लोक व्यवहार बंद हो जायेगा तथा उसका जीवन दूभर हो जायेगा। सत्य की जब तक उसने रक्षा की, सत्य उसकी रक्षा करता रहा। ऐसा ही विचार अन्य लक्षणों के विषय में भी करना चाहिए। मनुष्य सदाचार से ही आयु, योग्य संतान और अक्षय धन को प्राप्त करता है तथा सदाचार दुष्कर्मों के फलों का क्षय हो जाता है।
गीता कहती है = स्वधर्मे निधनं श्रेयः यहां धर्म को कर्तव्य का ही पर्याय माना गया है क्योंकि मनुष्य के स्वाभाविक दश लक्षणा धर्म का क्रियात्मक रूप उसके कर्तव्य के रूप में ही प्रकट होता है, अतः गीता कहती है अपने धर्म (कर्तव्य) के लिये अपना सम्पूर्ण जीवन लगा देना ही श्रेयस्कर है। कर्तव्य मार्ग से विचलित होना अधर्म है तथा अधर्मी व्यक्ति को अनेक प्रकार के दुःख (कर्मफल) भोगने पड़ते हैं, वह निःश्रेयस को प्राप्त नहीं कर सकता। धर्म का तत्व वस्तुतः बड़ा व्यापक है। सम्प्रदाय, जाति, वर्ग, वर्ण आदि बाह्य भेदों से वह अतीत है। धर्म निरूपाधिक है, अर्थात्त हिन्दू, मुसलमानादि नामों की उसे आवश्यकता नहीं है। वह तो सनातन है, मानव सृष्टि के आरम्भ से है तथा सृष्टि बनाने वाले ने उसे मानव समाज की रक्षा, उसके अभ्युदय तथा निश्रेयस के लिये स्वभाव में ही डाल दिया है। धर्म सहज है अतः यह सृष्टिकर्ता ने मनुष्य के साथ उसके मित्र के रूप में, उसके रक्षक के रूप में उसे परमानंद की प्राप्ति करने हेतु भेजा है। अविनाशी ब्रह्म ही अमरत्व, सनातन धर्म तथा अखण्ड आनंद का आश्रय है, अर्थात् धर्म का उद्गम परमपिता परमात्मा है। वह शुद्ध अंतःकरण में प्रकट होता है।
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वेद प्रचारक स्वामी दयानन्द महर्षि स्वामी दयानन्द ने वेद प्रचार के लिए ही मुख्यतः सर्वाधिक प्रयत्न किये। उनके मौखिक प्रचार के अतिरिक्त वेदों का भाष्य, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि आदि विभिन्न ग्रन्थ वेद प्रचार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। वह महाभारत काल के बाद के अपूर्व वेद प्रचारक हुए हैं।...