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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज विवाह सेवा" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित अलवर में एकमात्र Marriage Helpline है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। अलवर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Marriage Helpline is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Marriage Helpline Alwar is the only controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Alwar. We do not have any other branch or Centre in Alwar. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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महात्मा बुद्ध और महर्षि दयानन्द

सिद्धार्थ ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व इस पृथिवी पर जन्म लिया था। वे जिधर जाते उन्हें हिंसा का अराजक वातावरण दिखाई देता था। लाखों पशुओं की बलि चढाई जा रही थी। धर्म के नाम पर हजारों मूक पशुओं की निर्मम हत्या की जा रही थी। इन हत्याओं को धर्म के ताने-बाने में लपेटा जा रहा था। मंदिरों तथा उपासना के पवित्र स्थल रक्त रंजित हो रहे थे। सब चुप बैठे थे। परन्तु सिद्धार्थ साहसी था। तार्किकता और मानवीय संवेदना से भरा चित्त उसे चैन से सोने नहीं देता था। उसने समाज के तथाकथित कर्णधारों से पूछा कि इस कुत्सित हिंसा और बलि के लिए कौन जिम्मेदार है? सबने एक ही स्वर में जवाब दिया कि वेद में लिखा है। यह वेदोक्त धर्म है। सिद्धार्थ इस अनुचित कथन को मानने को तैयार नहीं था। वह वेदपोषित धर्म के खिलाफ ही नहीं, वेद के विरुद्ध हो गया।

गुजरात के टंकारा ग्राम में तीव्र मेधा संपन्न, प्रेम, दया, करुणा से परिपूर्ण हृदय वाले मूलशंकर का जन्म हुआ। मूलशंकर ने चाचा और बहन की मृत्यु के रूप में जीवन के कटू सत्य का साक्षात्कार किया। उन्होंने सिद्ध सन्तों व तपस्वियों का संग किया। कई-कई दिनों तक निराहार रहे। हिमालय की कंदराओं में तपस्या की। बर्फीली नदियों को पार किया। समाधि में लीन रहे। गुरुवर विरजानन्द की शरण में शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। ज्ञान और तप के सर्वोच्च शिखर को छुआ।

Siddhartha was born on this earth about two and a half thousand years ago. Wherever he went, he saw an anarchic environment of violence. Lakhs of animals were being sacrificed. Thousands of mute animals were being ruthlessly killed in the name of religion. These murders were being wrapped in the fabric of religion. Temples and holy places of worship were getting stained with blood. Everyone was sitting quietly. But Siddhartha was courageous. His mind filled with logic and human sensitivity did not let him sleep peacefully. He asked the so-called leaders of the society that who was responsible for this disgusting violence and sacrifice? Everyone answered in one voice that it is written in the Vedas. This is Vedic religion. Siddhartha was not ready to accept this unfair statement. He not only went against the religion nurtured by the Vedas, but also against the Vedas.

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    महात्मा बुद्ध और महर्षि दयानन्द सिद्धार्थ ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व इस पृथिवी पर जन्म लिया था। वे जिधर जाते उन्हें हिंसा का अराजक वातावरण दिखाई देता था। लाखों पशुओं की बलि चढाई जा रही थी। धर्म के नाम पर हजारों मूक पशुओं की निर्मम हत्या की जा रही थी। इन हत्याओं को धर्म के ताने-बाने में लपेटा जा रहा था।...

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